Wednesday, July 29, 2015

A few lines... :(

 
गुजर गयी एक हवा ज्ञान की हिंदुस्तां से होकर,
रो रहा देश शोकाकुल हो एक महामना को खोकर।
कौन यहाँ कहता है कि धरती से इक इंसान गया,
वीरान पड़ी हर गलियों है, लगता है हिंदुस्तान गया।

तू भारत का ज्ञान दीप, विज्ञान जगत का तारा है,
जो रहे हमेशा उदीयमान, तू वो अनमोल सितारा है।
तू इ़ंसान वही जिसका हर कर्म धर्म से ऊपर था,
जो लिए चमक दिनकर जैसा, इकलौता भारत भू पर था।

है ऋणी तेरा संपूर्ण जगत, तू मानवता का अग्रदूत,
किस आँचल से फिर पायेगा, भारत तुम जैसा सपूत।
तू था वो इंसान जिसके हाथों में कुरान और गीता था,
नहीं किसी दल के अधीन, जो मानवता का नेता था।

तू युवा देश की युवा सोच, हिंदुस्तां के प्रेरणास्रोत,
एक शिक्षक आजीवन थे तुम, तुम भारत के स्वाभिमान।
तुझमें बसती थी राजनीति, तुझसे पाया 'अग्नि' उड़ान,
तू रत्न वही गौरव करता जिस पर भारत का संविधान।

तू विदा हुआ इस धरती से, पर व्याप्त रहेगा जन जन में।
दिव्य ज्ञान विज्ञान की ज्योति, सर्वदा जलाता हर मन में।
आदर्श मेरे, मेरे कलाम, कुछ तुम्हें समर्पित करता हूँ,
श्रद्धांजलि हैं ये शब्द मेरे, मैं तुझपर अर्पित करता हूँ ।

भारत के ११वें राष्ट्रपति, विज्ञान जगत के महास्तंभ, देश रत्न डाक्टर अबुल पाकिर जैनुलआब्दिन अब्दूल कलाम को समर्पित।

शत शत नमन् !!

© आनंद राज 
Poem dedicated to kalam Sir by a member Anand Raj.